पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त का जीवन परिचय | Biography of Govind Vallabh Pant in Hindi 2024

पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त जिन्हें जी॰बी॰ पन्त भी कहते हैं। ये प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और वरिष्ठ भारतीय राजनेता थे। वे उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री और भारत के चौथे गृहमंत्री थे। गृहमंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना और हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना शामिल था। पंत जी एक विद्वान क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान नेता और अर्थशास्त्री भी थे।

पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त को देश के सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और एक कुशल प्रशासक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने आधुनिक भारत के मौजूदा स्वरूप को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उनकी गिनती देश के सबसे ईमानदार राजनेताओं में होती थी। वह कोई विशेष सुविधा नहीं लेते थे और न ही कभी सरकारी पैसे से अपना कोई निजी काम करते थे। उन्हें वर्ष 1957 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था।

दोस्तों! इस आर्टिकल में हम आपको पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त का जीवन परिचय और उनके जीवन से जुड़े संघर्ष को बताने वाले हैं। तो दोस्तों! विस्तार से जानते हैं –

पंडित गोविंद बल्लभ पंत का प्रारम्भिक जीवन

पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 1 सितम्बर 1887 को अल्मोड़ा जिले के श्यामली, खूंट गाँव में ब्राह्मण कुल में हुआ। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने की। 1905 में गोविंद बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये।

म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित, साहित्य और राजनीति विषयों से अपनी पढ़ाई पूरी की। वे पढ़ने में बहुत सबसे तेज थे। अध्ययन के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी किया करते थे। 1907 में गोविंद बल्लभ पंत ने बी०ए० और 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल किया। उन्हें कॉलेज की ओर से “लैम्सडेन अवार्ड” भी दिया गया था।

1910 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा आकर वकालत शूरू की। वकालत के सिलसिले में वे पहले रानीखेत गये, फिर काशीपुर में जाकर प्रेम सभा संस्था का गठन किया, जिसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करना था। इस संस्था का कार्य इतना व्यापक था कि ब्रिटिश स्कूलों ने काशीपुर से अपना बोरिया बिस्तर बाँधने में ही अपनी खैरियत समझी।

ये गोविंद बल्लभ पंत ही थे जिनकी वजह से ब्रिटिश स्कूल ऐसा करने पर मजबूर हुए। जब वे 18 वर्ष के थे, तब उन्होंने गोपालकृष्ण गोखले और मदन मोहन मालवीय को अपना आदर्श मानते हुए भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस के सत्रों में स्वयंसेवक के रूप में काम करना शुरू किया।

स्वतन्त्रता संघर्ष में पंडित गोविंद बल्लभ पंत का योगदान

दिसम्बर 1920 में ‘कुमाऊं परिषद’ का ‘वार्षिक अधिवेशन’ काशीपुर में हुआ। जहां 150 प्रतिनिधियों के ठहरने की व्यवस्था काशीपुर नरेश की कोठी में की थी। पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने बताया कि परिषद का उद्देश्य कुमाऊं के कष्टों को दूर करना है न कि सरकार से संघर्ष करना। इस प्रकार वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए। दिसम्बर 1921 में वे गान्धी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन से राजनीति में आये।

9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। उस समय वे नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे।

1927 में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ व उनके तीन अन्य साथियों को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा, किन्तु गान्धी जी का समर्थन न मिलने से वे उस मिशन में कामयाब न हो सके। 23 जुलाई, 1928 को पन्त जी ‘नैनीताल ज़िला बोर्ड’ के चैयरमैन बने। और 1928 के साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया। मई 1938 में पंडित गोविंद बल्लभ पन्त को देहरादून जेल भी जाना पड़ा था।

हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में योगदान

14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी, लेकिन देश में जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ तो इसमें देवनागरी में लिखी जाने वाली हिंदी सहित 14 भाषाओं को आठवीं सूची में आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया और छोटे मोटे विरोध के बाद 26 जनवरी 1965 को हिंदी देश की राजभाषा बन गई। इसमें पंडित गोविंद बल्लभ पन्त का अहम योगदान रहा।

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पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त की शादियां

पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने 3 शादियां की थी। पहली शादी 1899 में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह गंगा देवी के साथ हुआ। उस समय वे कक्षा 7वी में पढ़ रहे थे। पंत के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गई और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गई, उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। इस घटना के बाद वे बहुत उदास रहने लगे और अपना अधिकतर समय क़ानून व राजनीति को देने लगे।

परिवार के लोगों का दबाव होने के कारण 1912 में पंत का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ। पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त को दूसरी शादी से भी एक बच्चा हुआ, कुछ दिन बाद उसकी भी मृत्यु हो गई। अपने बच्चे की मौत के बाद पंत जी की पत्नी की भी मृत्यु हो गई। साल 1916 में पंत ने अपनी तीसरी शादी की। इस शादी से उन्हें एक पुत्र और 2 पुत्रियां हुई। पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त के राजनीति में आने के बाद उनके बेटे केसी पंत भी राजनीति में आए।

पंडित गोविन्द बल्लभ पंत का मुख्यमन्त्री का कार्यकाल

17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्य मन्त्री बने। उन्होंने किसानों के उत्थान और अस्पृश्यता के उन्मूलन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। बाद में दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वे 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री रहे।

जब भारत का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्व सम्मति से उपयुक्त पाया गया। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत के नवनामित राज्य के पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त , 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक तीसरी बार मुख्य मन्त्री बने।

पंडित गोविन्द बल्लभ पंत का गृह मंत्री कार्यकाल

सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उन्हें भारत के गृह मंत्री बने। भारत के गृह मंत्री रूप में पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त का कार्यकाल सन 1955 से लेकर 1961 तक उनकी मृत्यु होने तक रहे। उनकी काबिलियत की वजह से ही उन्हें देश के इतने बड़े पद पर आसीन रहे। पंडित गोविंद बल्लभ पन्त ने बड़ी लगन और निष्ठा से अपना कार्यकाल पूरा किया।

स्वाभिमानी पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त

एक बार पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त जी ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय-नाश्ते का प्रबंध किया गया था। जब बिल आया तब पंत ने बिल पास करने से इनकार कर दिया। जब उनसे इस बिल को पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल बनवाने वाले व्यक्ति को स्वयं चुकाना चाहिए। हां, चाय का बिल अवश्य पास हो सकता है। अधिकारियों ने उनसे कहा कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं होगा। ऐसे में इस बिल को पास करने से कोई गुनाह नहीं होगा।

उस दिन पंडित गोविंद बल्लभ पन्त की बैठक में चाय के साथ नाश्ता भी मंगवाया गया। जब बिल चुकाने की नौबत आई तो कुछ सोचकर पंत जी ने अपनी जेब से रुपये निकाले और अधिकारियों से कहा ‘चाय का बिल पास हो सकता है, लेकिन नाश्ते का नहीं। बैठक में नाश्ते भी मंगाए गए हैं, नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा। नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता।

सरकारी खजाने पर हमेशा ही जनता और देश का हक है। हम मंत्रियों का नहीं। हम जनता की संपत्ति को अपने ऊपर कैसे खर्च कर सकते हैं।’ इसके बाद अधिकारियों ने पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त को आश्वासन दिया कि सरकारी नियमों की अवहेलना नहीं की जाएगी। यह सुनकर पंत जी संतुष्ट हुए और अपने काम में लग गए।

पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त की मृत्यु

7 मार्च 1961 को हृदयाघात से जूझते हुए पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त की मृत्यु हो गयी। उस समय वे भारत सरकार में केन्द्रीय गृह मन्त्री थे।

स्मारक और संस्थान

  • गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान प्रयागराज उत्तर प्रदेश
  • गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर,
  • उत्तराखण्डगोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी गढ़वाल,
  • उत्तराखण्डगोविन्द बल्लभ पंत सागर, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
  • गोविन्द बल्लभ पंत इण्टर कॉलेज काशीपुर ऊधमसिंह नगर (उत्तराखंड)

पंडित गोविंद बल्लभ पंत का प्रसिद्ध कोट्स

हिंदी का प्रचार और विकास कोई रोक नहीं सकता

– गोविंद बल्लभ पंत

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