महादेवी वर्मा का जीवन परिचय | Mahadevi Verma Biography In Hindi [2023]

‘आधुनिक युग की मीरा’ कही जाने वाली महादेवी वर्मा छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। उन्हें हिंदी साहित्य में अपनी रचनाओं के लिए साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

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महादेवी वर्मा

दोस्तों! इस लेख में हमने महादेवी वर्मा से जुड़ी जानकारी साझा किया है इसे अंत तक जरूर पढ़ें।

नाममहादेवी वर्मा
जन्म26 मार्च 1907 फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश भारत
मृत्यु11 सितम्बर 1987 (उम्र 80) प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत
अभिभावकगोविंद प्रसाद, हेमरानी देवी
पतिडॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा
व्यवसायउपन्यासकार, कवयित्री, लघुकथा लेखिका
राष्ट्रीयता भारतीय
उच्च शिक्षासंस्कृत, प्रयागराज विश्वविद्यालय से
अवधि/कालबीसवीं शताब्दी
साहित्यिक आन्दोलन छायावाद
सम्मान 1956: पद्म भूषण, 1982: ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1988: पद्म विभूषण
प्रसिद्ध रचनाएंनिहार, नीरजा, रश्मि, दीपशिखा,पथ के साथी, साधिनी, क्षणदा और सांध्य गीत आदि

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय – Biography of Mahadevi Verma

महादेवी वर्मा का प्रारंभिक जीवन

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 में होली के दिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक मध्यवर्गीय सुशिक्षित परिवार में हुआ। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद प्राध्यापक थे और उनकी माता श्रीमती हेमरानी देवी शिक्षित और धार्मिक विचारों वाली ग्रहणी थी। अपने माता पिता की पहली संतान महादेवी वर्मा का जन्म बहुत लंबी प्रतीक्षा के बाद हुआ था। ऐसा कहा जाता है उनके परिवार में सातवीं पीढ़ी के बाद किसी कन्या का जन्म हुआ था। इसीलिए उनके परिवार ने उन्हें कुलदेवी मां दुर्गा का आशीर्वाद मानकर उनका नाम महादेवी रखा।

महादेवी वर्मा ने अपनी आरंभिक शिक्षा उज्जैन से पूरी की। अपने अध्ययन के साथ ही वे संगीत और चित्रकला में भी बचपन से ही रुचि रखती थी। उनका विवाह 9 वर्ष की अल्पायु में श्री रूपनारायण वर्मा से हुआ। इसके बाद वे अपने ससुराल इंदौर आ गई, जहां उन्होंने अपने अध्ययन को भी जारी रखा। उन्होंने प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास कर पूरे प्रांत में अव्वल स्थान हासिल किया। इसके बाद उन्हें राजकीय छात्रवृत्ति भी मिलने लगी। उन्हें बचपन से ही कविताएं लिखने का बहुत शौक था उनकी कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में भी छपने लगी थी। वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थी।

आगे महादेवी वर्मा के काव्य रचना का बड़ी तेजी से सृजन कार्य जारी रहा। उनकी रचनाएं मैथिलीशरण गुप्त और सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे रचनाकारों ने खूब सराहा। 11वीं कक्षा तक उन्होंने स्कूल में वाद विवाद प्रतियोगिता और काव्य सम्मेलनों में भाग लेकर कई पुरस्कार भी प्राप्त किया। महादेवी वर्मा ने संस्कृत से एम ए तक की अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी की। अपनी शैक्षणिक योग्यता के कारण एम ए पास करते ही उन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्राचार्य का पद मिला जिस पर काफी लंबे समय तक उन्होंने काम किया।

महादेवी वर्मा का साहित्य में योगदान

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महादेवी वर्मा हमेशा नारी शिक्षा और नारी जागृति जैसे कार्यों के प्रति बहुत सजग थीं। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली ‘चाँद’ पत्रिका का संपादन कार्य भी किया। सन् 1955 में उन्होंने साहित्यकारों के साहित्य सृजन कार्य हेतु प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की। जीवन की विविधता उनकी साहित्यिक अभिव्यक्तियों में देखने को मिलती है। महादेवी वर्मा का व्यक्तित्व बहुत उदार, मिलनसार और परोपकारी था। उन्होंने गरीबों और दीन दुखियों की बहुत सेवा की। वे परोपकारी कामों और समाज सेवा में हमेशा तत्पर रहती थी।

महादेवी की रचनाओं में उनके बहिर्मुखी व्यक्तित्व की अत्यंत जीवंत अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। उनकी कविताओं में अक्सर वेदना, अकेलेपन और करुणा की झलक दिखाई देती है जिससे उनके अंतर्मुखी स्वभाव का पता चलता है। महादेवी की रचनाओं में उनके गद्य और पद्य साहित्य को देखा जाए तो दो अलग अलग व्यक्तियों की रचनाएं लगेंगी। आज भी महादेवी को उनकी रचनाएं, कविता, चित्र, संगीत, राष्ट्रीय आंदोलन और नारी समाज की सशक्तिकरण में योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई।

महादेवी ने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। महादेवी वर्मा साहित्य अकादेमी की सदस्यता प्राप्त करने वाली पहली लेखिका भी थी। उनकी प्रसिद्ध रचना यामा के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अपनी विलक्षण प्रतिभा की धनी महादेवी वर्मा की मृत्यु 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) उत्तर प्रदेश में हुई। हिंदी साहित्य में अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने महादेवी वर्मा को पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया है।

महादेवी वर्मा की रचनाएं

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महादेवी वर्मा ने कविताओं के साथ रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, डायरी आदि गद्य विधाओं में भी रचनाएं लिखी। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’, ‘साधिनी’, ‘प्रथम आयाम’, ‘सप्तपर्णा’, ‘अग्निरेखा’ उनके काव्य-संग्रह हैं। रेखाचित्रों का संकलन ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ आदि हैं। ‘शृंखला की कड़ियाँ’, ‘विवेचनात्मक गद्य’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध’, ‘संकल्पिता’, ‘हिमालय’, ‘क्षणदा’ उनके निबंधों का संकलन है। उन्होंने यह, पथ के साथी, और मेरा परिवार जैसी कई रचनाएं भी लिखी है। उनकी रचनाओं में सौंदर्य, माधुर्य और प्रकृति की छटा देखने को मिलती है, इसीलिए उन्हें प्रकृति पुत्री भी कहा जाता है।

महादेवी मुख्यतः गीति कवयित्री हैं उन्होंने अपने काव्य में प्रतीकात्मक संकेत-भाषा का प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में वेदनानुभूति, जड़ चेतन का एकात्म्य भाव, सौंदर्यानुभूति, मूल्य चेतना और रहस्यात्मकता देखने को मिलती है। अपने काव्य में छायावादी प्रतीकों के साथ मौलिक प्रतीकों के साथ उन्होंने रूपक, अन्योक्ति, समासोक्ति तथा उपमा अलंकार का भी कुशल प्रयोग किया है। उनके संबंध में कहा जाता है छायावाद ने उन्हें जन्म दिया था और उन्होंने छायावाद को जीवन दिया।

FAQ

Q : महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है?

Ans : नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, अग्नि रखा, दीपशिखा और सप्तपर्णा आदि।

Q : महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचना पर कौन पुरस्कार दिया गया?

Ans : महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल, 1982 में काव्य संकलन “यामा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1988 में पद्म विभूषण और 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

Q : महादेवी वर्मा ने क्या लिखा?

Ans : महादेवी जी छायावाद के प्रमुख कवियों में से एक थीं। नीहार, रश्मि, नीरजा, यामा, दीपशिखा उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। कविता के साथ-साथ उन्होंने सशक्त गद्य रचनाएँ भी लिखी हैं जिनमें रेखाचित्र तथा संस्मरण प्रमुख हैं। अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ उनकी महत्वपूर्ण गद्य रचनाएँ हैं।

Q : महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?

Ans : महादेवी को व्यापक रूप से ‘आधुनिक मीरा’ के रूप में प्रेम के विषयों के साथ सरगर्मी कार्यों के लिए पहचाना जाता था।

Q : महादेवी वर्मा की कविताओं का केंद्रीय भाव क्या है?

Ans : महादेवी जी की रचनाओं में वैयक्तिक भावनाओं-प्रेम, विरह, पीड़ा आदि की अभिव्यिक्त् हुई है। बदली के उमड़ने घिरने बरसने के माध्यम से कवयित्री अपने मन में वेदना के उमड़ने ओर बरसने को संकेतित करती है। कवयित्री अपनी वैयक्तिक भावनाओं का आरोप प्रकृति के क्रिया व्यापारों में करती है।

Q : महादेवी वर्मा का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है?

Ans : भारतीय साहित्य जगत को अपनी लेखनी से समृद्ध करने वाली लेखिका महादेवी (Mahadevi Verma) हिंदी साहित्य के छायावाद काल के प्रमुख 4 स्तम्भों में से एक हैं। हिंदी साहित्य में उनकी एक सशक्त पहचान है। छायावादी काव्य के विकास में इनका अविस्मरणीय योगदान रहा है।

Q : महादेवी वर्मा की शैली क्या है?

Ans : महादेवी जी की रचना-शैली की प्रमुख विशेषता भावतरलता, वैयक्तिकता, प्रतीकात्मकता, चित्रात्मकता, आलंकारिता, छायावादी तथा रहस्यात्मक अभिव्यक्ति आदि हैं। महादेवीजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत के सरल और क्लिष्ट तत्सम शब्दों का मेल है।

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