Mirabai Ka Jivan Parichay | मीराबाई का जीवन परिचय NCERT

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Mirabai Ka Jivan Parichay | मीराबाई का जीवन परिचय: मीराबाई एक महान संत और श्रीकृष्ण की भक्त थीं। वह जोधपुर, राजस्थान के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थी। अपने ही परिवार से आलोचना और शत्रुता का सामना करने के बावजूद, उन्होंने एक संत का जीवन व्यतीत किया और कई भक्ति भजनों की रचना की। आज भी श्री कृष्ण के भक्तों में इनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है।

पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में राजस्थान के एक शाही परिवार में जन्मी मीराबाई बचपन से ही भगवान कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की स्तुति में कई सुंदर कविताएँ और भजन लिखी। इतनी सदियों पहले उनके द्वारा लिखे गए ‘भजन’ आज भी दुनिया भर के कृष्ण भक्तों द्वारा गाए जाते हैं।

मीराबाई एक प्रसिद्ध कवयित्री थीं, जिनके लेखन की सभी प्रशंसा करते हैं। मीरा गुरु रविदास (रैदास) की शिष्या थी। वह अपनी भजन रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी अधिकांश रचनाएँ भगवान कृष्ण की स्तुति में लिखी गई हैं। उन्होंने लगभग 1,300 प्रार्थना गीत लिखे हैं।

मीराबाई की संक्षिप्त जानकारी इस टेबल में दी गई है—

नाममीराबाई, मीरा, जशोदा (जन्म नाम)
जन्म1498 ई., कुड़की ग्राम, मेड़ता, राजस्थान
मृत्यु1547 ईस्वी, रणछोड़ मंदिर डाकोर, द्वारिका (गुजरात) 59 वर्ष
माता-पितावीर कुमारी, रतनसिंह राठौड़
पतिराणा भोजराज सिंह (मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र)
गुरुसंत रविदास
धर्महिन्दू
प्रसिद्धि का कारणकृष्ण-भक्त, संत, कवयित्री और गायिका

Mirabai Ka Jivan Parichay (मीराबाई का जीवन परिचय)

मीराबाई-की-कहानी

मीराबाई का जन्म

मीराबाई का जन्म सन् 1498 ई॰ में पाली के कुड़की गांव में हुआ था। मीरा मेड़ता महाराज के छोटे भाई रतन सिंह और वीर कुमारी की इकलौती संतान थी। अपने बचपन में ही उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। इसलिए इनके दादा, राव दूदा जो एक वैष्णव भक्त थे। उन्होंने मीरा को मेड़ता लेकर आए और अपनी देख-रेख में उनका पालन-पोषण किया। मीरा ने धर्म और राजनीति की भी शिक्षा ली, वह संगीत और कला में बहुत निपुण थी।

मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। उसने अपना जीवन अपने प्रभु की सेवा में समर्पित कर दिया था। उन्हें न तो दौलत, शोहरत और न ही कोई राजसी सुख पसंद था उनका जीवन बहुत संघर्षमय गुजरा। अपने बचपन से ही मीरा के मन में कृष्ण की छवि रची-बसी थी, इसलिए यौवन से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना।

मीरा बचपन से ही धार्मिक लोगों के सम्पर्क में रही। उनके शाही परिवार की प्रथा के अनुसार उन्होंने तीर-तलवार चलाना, अस्त्र- शस्त्र चलाना, घुड़सवारी करना, रथ-चलाना आदि की भी शिक्षा ली पर मीरा के लिए ये सब व्यर्थ थे। मीरा ने संगीत और आध्यात्मिक शिक्षा भी ली। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक ज्ञान संत रविदास (रैदास) से ली, वे उन्हें अपना गुरु मानती थी।

मीराबाई का धार्मिक स्वभाव

मीरा बाई मृदुभाषी, प्रतिभावान और सुरीली आवाज वाली गायिका थी। वह अपने समय की सबसे असाधारण सुंदरियों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित थी, जिसकी प्रसिद्धि कई राज्यों और प्रांतों में फैली हुई थी। राजकुमारी होकर भी मीराबाई ने अपने राजसी सुख सुविधाओं को छोड़कर कृष्ण की जोगनिया बनना स्वीकार किया।

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मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम

मीराबाई-का-जीवन-परिचय

मीरा का कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना की वजह से अपने चरम पर पहुँचा था। बाल्यकाल में एक दिन उनके पड़ोस में बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थी। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गई, बारात को देखकर मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है? इस पर मीराबाई की माता ने हंसते हुए (उपहास में ही) भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं।

यह बात मीरा के बालमन में, एक गांठ की तरह बन गई। वह कृष्ण को ही अपना पति समझने लगी और आजीवन उन्हें ही अपना पति माना। मीरा का कम उम्र में ही चित्तौड़ के राजकुमार भोज राज से उनकी इच्छा के विरुद्ध शादी कर दी गई। किन्तु मीरा को महल की विलासिता पसंद नहीं थी, उनके लिए तो बस श्री कृष्ण की भक्ति ही काफी थी। किन्तु विवाह के कुछ साल बाद ही मीरा के पति की मृत्यु हो गई।

मीराबाई की तीर्थ यात्रा

ससुराल में मीरा पर कई अत्याचार किए गए। उन्होंने मीरा को ज़हर देकर मारना भी चाहा। किन्तु श्री कृष्ण की कृपा से उन्हें कुछ नहीं हुआ। मीरा की भक्ति दिनों-दिन बढ़ती गई और महल छोड़ मीरा, वृंदावन, मथुरा और फिर द्वारिका चली गई। वहां जाकर वह कृष्ण भक्ति करने और जोगन बनकर साधु-संतों के साथ रहने लगी। वह मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटो तक नाचती गाती रहती थी। उनकी कृष्ण भक्ति, उनके ससुराल वालों को बिल्कुल पसंद नहीं थी।

कृष्ण के करीब रहने की चाहत में, मीराबाई ने भगवान कृष्ण से जुड़े पवित्र स्थलों की विभिन्न तीर्थयात्राओं की शुरुआत की। जहाँ ऐसा माना जाता है कि कृष्ण की दिव्य लीलाएँ हुई थीं। मीराबाई की तीर्थयात्राएँ उनकी उत्कट भक्ति से चिह्नित थीं, और उन्होंने इन यात्राओं को अपने भजनों के माध्यम से अपने प्यार और समर्पण को व्यक्त करने के अवसरों के रूप में इस्तेमाल किया।

मीराबाई की प्रमुख रचनाएं और विशेषताएं

मीराबाई ने भगवान श्री कृष्ण के अनेक पदों की रचना की है जिसमें प्रमुख है – नरसी जी का मायरा, राग सीरठा, गीत गोविंद टीका, राम गोविंद आदि हैं। इसके अलावा उन्होंने कई भक्ति गीतों की भी रचना की है। लोग उनके भक्तिमय भजन आज भी गाते हैं।

मीरा सगुण कृष्ण भक्ति की उपासक हैं जो कृष्ण को ही अपना सब कुछ मानती हैं। उनकी रचनाएं श्रीकृष्ण के साथ मिलन की लालसा और खोज को व्यक्त करती है। मीरा की रचनाओं में प्रेम संबंधी पद, रहस्यवादी भावना, जीवन संबंधी पद और संयोग तथा वियोग का बड़ा ही मार्मिक वर्णन देखने को मिलता है।

भाषा शैली और साहित्य में स्थान

मीरा के काव्य की भाषा ब्रज है पर उनकी रचनाओं में गुजराती राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी आदि भाषाओं के शब्द भी देखने को मिलता है। उनकी भाषा में एकरुपता नहीं है, पर फिर भी उनकी रचनाओं में सरलता और मधुरता कूट-कूट कर भरी है। श्रृंगार रस की प्रधानता उनकी रचनाओं में अधिक है। हिंदी काव्य में मीरा का स्थान अद्वितीय है। उनकी रचना में प्रेम का संयोग तथा वियोग का जो वर्णन मिलता है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।

मीरा बाई के दोहे अर्थ सहित

भारत में भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख संत-कवयित्री मीरा बाई ने दुनिया को अपने गहन दोहे दिए जो आध्यात्मिक साधकों के बीच आज भी गूंजते हैं। बाई के कालजयी छंदों के पीछे के अर्थों पर प्रकाश डालते हुए उनके महत्व को बताते हैं।

मीरा बाई के दोहे, जिन्हें अक्सर “भजन” कहा जाता है, भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति की हार्दिक अभिव्यक्तियों का संग्रह हैं। ये दोहे काव्यात्मक छंद हैं जो परमात्मा के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाते हैं। प्रत्येक दोहा एक अनोखा अर्थ रखता है और उसके अटूट प्रेम और दैवीय उपस्थिति के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

 “पायोजी मैंने राम रतन धन पायो”

यह दोहा मीरा बाई को भगवान राम के प्रेम की अमूल्य निधि प्राप्त करने के आनंदपूर्ण अहसास की बात करता है। यह प्रतीकात्मक रूप से भगवान राम को एक अनमोल रत्न के रूप में चित्रित करता है, जो उनकी भक्ति के माध्यम से प्राप्त आध्यात्मिक संपत्ति को उजागर करता है।

 “मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई”

इस पद में मीरा बाई की भक्ति को खूबसूरती से दर्शाया गया है, जहाँ वह भगवान कृष्ण के प्रति अपने विशेष लगाव की घोषणा करती है। यह दोहा पूरी तरह से परमात्मा में सांत्वना और साथ पाने में उनके विश्वास को दर्शाता है।

 “भजो रे मन गोविंदा”

इस दोहे में, मीरा बाई अपने मन से भगवान कृष्ण के दूसरे नाम गोविंदा की पूजा में संलग्न होने का आह्वान करती हैं। यह किसी के विचारों और भावनाओं को परमात्मा की ओर पुनर्निर्देशित करने की आवश्यकता पर जोर देता है।

 “कोई नहीं है फिर भी सब कुछ लगता है”

मीरा बाई अपने आध्यात्मिक जुड़ाव की गहरी भावना को व्यक्त करती हैं, जहाँ भगवान कृष्ण से शारीरिक रूप से दूर होने के बावजूद, वह अपने आस-पास की हर चीज़ में उनकी उपस्थिति महसूस करती हैं। यह दोहा दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी प्रकृति पर प्रकाश डालता है।

 “हरि तुम हरो जन की पीर”

मीरा बाई भगवान कृष्ण की शरण लेती हैं और उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाने वाले के रूप में संबोधित करती हैं। यह कविता सांत्वना और आराम के अंतिम स्रोत के रूप में परमात्मा में उनके विश्वास को दर्शाती है।

मीराबाई के भजन

भारत के भक्ति आंदोलन की श्रद्धेय संत-कवयित्री मीराबाई ने हमें भाव-विभोर करने वाले भजनों का उपहार दिया, जिनके गहरे अर्थ हैं। इस लेख में, हम मीराबाई के भजनों के सार और महत्व को सीधे तरीके से समझते हैं।

मीराबाई के भजन भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति की संगीतमय अभिव्यक्ति हैं। ये भजन काव्यात्मक गीत हैं जो उनके गहरे आध्यात्मिक संबंध को दर्शाते हैं। प्रत्येक भजन का एक अनोखा अर्थ होता है, जो ईश्वर के प्रति उनके अटूट प्रेम और विश्वास को दर्शाता है।

 “पायोजी मैंने राम रतन धन पायो”

यह भजन मीराबाई को भगवान राम के प्रेम के अनमोल खजाने को प्राप्त करने के एहसास को खुशी से चित्रित करता है। भजन प्रतीकात्मक रूप से भगवान राम को एक मूल्यवान रत्न के रूप में प्रस्तुत करता है, जो भक्ति के माध्यम से प्राप्त आध्यात्मिक धन पर प्रकाश डालता है।

 “मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई”

मीराबाई की भक्ति इस पद में झलकती है, जहाँ वह भगवान कृष्ण के प्रति अपने अनन्य लगाव की घोषणा करती है। यह भजन पूरी तरह से परमात्मा में सांत्वना और साथ पाने में उनके विश्वास को दर्शाता है।

 “भजो रे मन गोविंदा”

इस भजन में, मीराबाई अपने मन को भगवान कृष्ण के दूसरे नाम गोविंदा की पूजा करने के लिए प्रेरित करती हैं। यह विचारों और भावनाओं को परमात्मा की ओर पुनर्निर्देशित करने पर जोर देता है।

 “कोई नहीं है फिर भी सब कुछ लगता है”

मीराबाई की कविता भगवान कृष्ण से भौतिक दूरी के बावजूद, उनके आध्यात्मिक जुड़ाव की भावना को व्यक्त करती है। यह भजन दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी प्रकृति पर प्रकाश डालता है।

 “हरि तुम हरो जन की पीर”

सांत्वना की तलाश में, मीराबाई दुखों के निवारक के रूप में भगवान कृष्ण की ओर मुड़ती हैं। यह भजन आराम के अंतिम स्रोत के रूप में ईश्वर में उनके विश्वास को दर्शाता है।

मीराबाई की मृत्यु

मीराबाई की मृत्यु कैसे हुई, यह निश्चित रूप से कोई नहीं जानता। किन्तु यह संभव है कि उनकी मौत प्राकृतिक कारणों से हुई हो, लेकिन यह भी संभव है कि उनकी हत्या की गई हो। उनकी मृत्यु काफी रहस्यमयी थी, पर उनकी मृत्यु को लेकर कई किंवदंतियाँ और कहानियाँ प्रचलित है।

मीरा का कृष्ण के प्रति अपार प्रेम था। ऐसा माना जाता है कि वह द्वारका में कृष्ण के मंदिर में गायब हो गई। और यह भी कहा जाता है कि मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे अपने आप बंद हो गए, जब बाद में, दरवाजे खोले गए, तो मीरा की साड़ी भगवान कृष्ण की मूर्ति के चारों ओर लिपटी हुई पाई गई। पर इस बात में कितनी सच्चाई है पता नहीं।

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मीरा बाई की समाधि

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित मीरा बाई की समाधि भारत के आध्यात्मिक परिदृश्य में एक विशेष स्थान रखती है। यह मीरा बाई की अटूट भक्ति और भक्ति आंदोलन पर उनके स्थायी प्रभाव के प्रमाण के रूप में खड़ा है। यह साइट तीर्थयात्रियों और साधकों को आकर्षित करती रहती है, जो मीरा बाई की उल्लेखनीय आध्यात्मिक यात्रा और उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत की एक झलक प्रदान करती है।

मीरा बाई की समाधि वह पवित्र स्थल है जहाँ माना जाता है कि उन्हें दफनाया गया था। भारत के राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित, यह मीरा बाई की भक्ति और भक्ति आंदोलन में उनके योगदान के कारण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है।

मीराबाई का ऐतिहासिक संदर्भ

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16वीं शताब्दी में मीरा बाई के जीवनकाल में उन्हें अपनी भक्ति के कारण चुनौतियों और विरोध का सामना करना पड़ा। अपनी आध्यात्मिक मान्यताओं के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने उनके अनुयायियों के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़ी। मीरा बाई की समाधि उनकी यात्रा और उनके द्वारा जीते गए संघर्षों की एक ठोस याद दिलाती है।

FAQ

Q : मीराबाई कौन थी?

Ans : मीराबाई, जिन्हें मीराबाई के नाम से भी जाना जाता है, 16वीं शताब्दी के दौरान भारत में भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख संत-कवयित्री थीं। उन्हें भगवान कृष्ण के प्रति उनकी अटूट भक्ति और उनके भावपूर्ण भजनों (भक्ति गीतों) के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है।

Q : मीराबाई का जन्म कहाँ और कब हुआ था?

Ans : मीराबाई का जन्म 1498 में कुडकी शहर (अब राजस्थान, भारत में) में हुआ था।

Q : मीराबाई का प्रारंभिक जीवन कैसा था?

Ans : मीराबाई ने छोटी उम्र से ही गहरी आध्यात्मिक प्रवृत्ति प्रदर्शित की। उनका विवाह राणा भोजराज से हुआ था, लेकिन भगवान कृष्ण के प्रति उनकी गहन भक्ति के कारण अक्सर उनके परिवार और समाज में झगड़े होते थे।

Q : मीरा और कृष्ण का क्या रिश्ता था?

Ans : मीरा कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी जो उन्हें अपना पति मानती थी।

Q : मीराबाई की मृत्यु कब हुई?

Ans : कहते हैं कि जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं। मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1547 में द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।

Q : मीरा ने विष क्यों पिया था?

Ans : मीरा ने हंसते हुए विष का प्याला इसलिए पी लिया क्योंकि वह श्री कृष्ण की सहज भक्ति में लीन थीं। उन्हें अपने आराध्य प्रभु श्रीकृष्ण पर विश्वास था कि उनका कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला। इसीलिए जब राणा ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा तो उन्होंने हंसते हुए विष का प्याला पी लिया।

Q : मीरा के लिए विष का प्याला किसने और क्यों भेजा?

Ans : मीरा के देवर ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा ताकि उसे पीकर मीरा मर जाए और उनका कुल अपमान से बच जाए।

Q : मीरा को कौन सा धन प्राप्त हो गया है?

Ans : मीराबाई को राम रतन धन मिल गया है।

Q : मीराबाई की भक्ति का भाव क्या है?

Ans : मीराबाई श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं उनकी भक्ति ‘माधुर्य भाव’ की भक्ति कही जाती है। माधुर्य भाव की भक्ति के अंतर्गत भक्त और भगवान में प्रेम का संबंध होता है। मीराँबाई श्री कृष्ण के प्रेम में डूबी हुई हैं।

Q : मीरा ने संसार की तुलना किससे की है और क्यों?

Ans : मीरा ने संसार की तुलना चौसर खेल से की है। जिस तरह चौसर खेल क्षण भर में समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार यह संसार भी क्षणभंगुर है। क्षण भर में नष्ट होनेवाला है।

Q : मीरा को क्या देखकर रोना आता है?

Ans : मीरा जगत को देखकर इसलिए रोती है, क्योंकि संसार के रंग-ढंग ठीक नहीं हैं। जगत के झूठे धंधों में फँसे लोगों को देखकर मीरा को रोना आता है।

Q : मीरा नौकरानी क्यों बनना चाहती है?

Ans : मीरा का हृदय कृष्ण के पास रहना चाहता है। उसे पाने के लिए इतना अधीर है कि वह उनकी सेविका बनना चाहती हैं। वह बाग-बगीचे लगाना चाहती हैं जिसमें श्री कृष्ण घूमें, कुंज गलियों में कृष्ण की लीला के गीत गाएँ ताकि उनके नाम के स्मरण का लाभ उठा सके।

Q: मीराबाई का योगदान क्या था?

Ans : मीराबाई का मुख्य योगदान उनके हार्दिक भजन थे जो भगवान कृष्ण के प्रति उनके प्रेम और भक्ति को व्यक्त करते थे। ये रचनाएँ लोगों को प्रेरित करती रहती हैं और भारतीय भक्ति संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

Q : मीराबाई की भक्ति अद्वितीय क्यों है?

Ans : मीराबाई की भक्ति अद्वितीय थी क्योंकि उन्होंने अपने दिल की पुकार का पालन करने के लिए सामाजिक मानदंडों और चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने अक्सर पारंपरिक सीमाओं को पार करते हुए गहन भक्ति का मार्ग अपनाया।

Q : मीराबाई के जीवन का क्या महत्व है?

Ans : मीराबाई का जीवन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भक्ति की शक्ति और चुनौतियों का सामना करने में किसी की मान्यताओं के प्रति सच्चे रहने की क्षमता का उदाहरण है। भक्ति काव्य और भक्ति में उनके योगदान ने भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है।

Q : मीराबाई ने अपनी भक्ति किस प्रकार व्यक्त की?

Ans : मीराबाई ने भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भावनाओं और आध्यात्मिक लालसा से भरे भजनों की रचना और गायन के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त की।

Q: मीराबाई के कुछ प्रसिद्ध भजन कौन से थे?

Ans : मीराबाई के प्रसिद्ध भजनों में “पायोजी मैंने राम रतन धन पायो,” “मेरे तो गिरिधर गोपाल, दुसारो ना कोई,” और “भजो रे मन गोविंदा” शामिल हैं।

Q : क्या मीराबाई के भजन आज भी लोकप्रिय हैं?

Ans : हाँ, मीराबाई के भजन आज भी लोकप्रिय हैं और भारत और दुनिया भर में लोगों द्वारा भक्ति और आध्यात्मिक संबंध की अभिव्यक्ति के रूप में गाए और पूजे जाते हैं।

Q : मीराबाई को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

Ans : अपनी अटूट भक्ति के कारण मीराबाई को अपने परिवार और समाज के विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा। सामाजिक मानदंडों का पालन करने से इनकार करने के कारण अक्सर संघर्ष होता था।

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