Suryakant Tripathi Nirala Ka Jeevan Parichay 2024

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Suryakant Tripathi Nirala Ka Jeevan Parichay: सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” एक भारतीय कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, नाटककार, कहानीकार और सम्पादक थे जिन्होंने हिंदी भाषा में अनेक रचनाएं लिखी है। वह छायावादी युग के चार प्रमुख कवियों में से एक थे। उन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत से लेकर मध्य तक हिंदी साहित्य में बहुत योगदान दिया। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई काव्य धारा का जनक भी माना जाता है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ स्वभाव से बहुत विद्रोही और क्रांतिकारी थे।

उन्होंने समाज में चल रही मान्यताओं को स्वीकार नहीं किया और यही कारण था कि सूर्यकान्त त्रिपाठी को समाज की आलोचना का सामना भी करना पड़ा। अपने लेखन कार्य के अलावा वे रेखाचित्र भी बनाया करते थे। सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” को उनके गहन लेखन के लिए जाना जाता है जो उनके समय के संघर्षों और लोकाचार को दर्शाता है।

निराला की साहित्यिक कृतियों में कविता, कथा और निबंध सहित विभिन्न लेखन शैलियाँ शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक उनकी बहुमुखी प्रतिभा और उनके विचार की गहराई को प्रदर्शित करती है। निराला छायावाद के साहित्यिक रचनाकारों में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे, उन्होंने रूमानियत, रहस्यवाद और मानवीय भावनाओं पर विशेष जोर दिया।

उनकी कविता अक्सर प्रेम, प्रकृति, आध्यात्मिकता और सामाजिक न्याय के विषयों पर आधारित होती है, जो पूरे भारत में पाठकों के बीच लोकप्रिय है। उनके छंदों की विशेषता उनकी गीतात्मक, विशद कल्पना और दार्शनिक सोच को दर्शाती है जो आज भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती है। अपनी काव्यात्मक क्षमता के अलावा, निराला ने सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर भी बड़े पैमाने पर रचनाएं लिखा है।

साथ ही सामाजिक सुधार की वकालत करते हुए हाशिये पर पड़े लोगों की दुर्दशा को भी बखूबी उजागर किया है। अपने निबंधों और नाटकों के माध्यम से, वह विचारोत्तेजक दृष्टिकोण और आलोचनाएँ प्रस्तुत करते हुए, अपने युग के सबसे बड़े कवि के रूप में उभरे। चलिए अब जानते है सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन के बारे में विस्तार से इसीलिए आप इस लेख को पूरा जरूर पढ़े।

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jeevan Parichay

Name Suryakant Tripathi
Nickname Nirala
Born21 February 1899
Midnapore, Bengal Presidency, British India
Died15 October 1961 (aged 64)
Allahabad, Uttar Pradesh, India
SpouseManohara Devi
Profession Writer, Poet, essayist, novelist and editor
NationalityIndian
PeriodChhayavaad

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का प्रारंभिक जीवन

सूर्यकांत त्रिपाठी, जिन्हें निराला के नाम से भी जाना जाता है, उनका जन्म 21 फरवरी, 1896 को बंगाल के मिदनापुर में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, पंडित रामसहाय त्रिपाठी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव के निवासी थे। पर उनके पिता की सिपाही की नौकरी के कारण वे मिदनापुर में रहने लगे थे।

उनके पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसीलिए वे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहे, जिसके कारण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को बचपन से ही गरीबी का सामना करना पड़ा। उनके पिता एक कठोर स्वभाव के व्यक्ति हुआ करते थे। सूर्यकांत त्रिपाठी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बंगाली माध्यम से अपने नजदीकी स्कूल से पूरी किया।

और इसी स्कूल से उन्होंने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा भी पास की। बचपन में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला बहुत चंचल स्वभाव के थे जिसके कारण वे पढ़ने लिखने में कम बल्कि खेल कूद करने, घूमने फिरने और कुश्ती खेलने में अपना ज्यादा ध्यान था इसीलिए कभी कभी उन्हें उनके पिता की बहुत डांट भी खानी पड़ती थी। उन्हें संगीत कभी बहुत शौक था।

जब सूर्यकांत त्रिपाठी केवल 3 वर्ष के थे तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद उन्होंने घर पर रहकर ही अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की। क्योंकि उनके पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उन्होंने स्कूल से ही बंगाली भाषा में महारत हासिल कर ली थी। इसके बाद उन्होंने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के साहित्यों पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया।

कुछ समय बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई जिसके कारण घर की जिम्मेदारी और उनका पालन पोषण का पूरा दायित्व सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के ऊपर आ गई। उन्होंने कई नौकरियां भी की अपनी संघर्षमय जीवन के साथ ही उन्होंने अपना लेखन कार्य को भी जारी रखा।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पारिवारिक विपत्तियाँ

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को अपने जीवन में बहुत सारी विपत्तियों का सामना करना पड़ा। अपने बचपन में ही सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को अपनी मां का साया छूट गया था। जब वे केवल तीन साल के थे तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। उनका विवाह पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में ही हो गया था। उनका विवाह पं. रामदयाल की पुत्री मनोहरा देवी से हुआ था।

उनकी पत्नी बहुत सुंदर, गुणवान और सुशिक्षित थी उन्हें संगीत का भी ज्ञान था। जिनसे उनकी एक बेटी भी हुई। पहले सूर्यकांत त्रिपाठी अपनी रचनाओं को बंगाली में लिखा करते थे। पर उनके हिंदी के प्रति प्रेम को देखते हुए उनकी पत्नी ने उन्हें हिंदी भाषा में अपनी रचनाएं लिखने का सुझाव दिया। इसके बाद सूर्यकांत त्रिपाठी हिंदी भाषा में अपनी रचनाएं लिखने लगे।

उनके पिता की मृत्यु भी बहुत जल्द ही हो गई थी जिसके कारण अपने परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी अब सूर्यकांत त्रिपाठी के ऊपर आ गई थी। अपनी पत्नी के साथ भी उनका सफर बहुत कम समय तक ही था उनकी पत्नी केवल बीस वर्ष की आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी।

क्योंकि उस समय इनफ्लुएँजा महामारी का भरी प्रकोप था जिससे उनके घर के बहुत से सदस्यों की मृत्यु हो गई थी। उनमें से एक उनकी विधवा बेटी की भी मृत्यु हो गई थी। अपने परिजनों को बहुत कम उम्र में खोने का दुख भला सूर्यकांत त्रिपाठी से बेहतर कौन जान सकता है। पर उनके जीवन में आई सारी मुसीबतों का उन्होंने बखूबी सामना किया।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का करियर

विशेष रूप से अपनी कविता के लिए प्रसिद्ध सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ में से एक माने जाते हैं। बचपन से ही वे रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे व्यक्तियों से विशेष रूप से प्रभावित थे। अपने पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने कई नौकरियां की। उन्होंने

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य में अपना करियर शुरू किया। बाद में, उन्होंने संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद में कदम रखा। उन्होंने ‘समन्वय’ का संपादन किया और मतवाला के संपादक मंडल में कार्य किया। उन्होंने 1935 के मध्य तक लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में काम किया और मासिक पत्रिका सुधा में योगदान दिया।

इसके बाद वे 1942 से अपनी मृत्यु तक इलाहाबाद चले गए और स्वतंत्र लेखन और अनुवाद में लगे रहे। 1920 से शुरू हुई उनकी कविता, न्यूनतम सहारा का उपयोग करते हुए, वास्तविकता के कल्पनाशील चित्रण द्वारा चिह्नित थी। उन्हें हिंदी में मुक्त छंद के प्रणेता का श्रेय दिया जाता है। 1930 में प्रकाशित अपने काव्य संग्रह “परिमल” में, उन्होंने काव्य मुक्ति का विचार व्यक्त किया, जो कर्म बंधन से मानव मुक्ति के समान था।

उनकी पहली कविता 1920 में प्रकाशित हुई थी, उसके बाद उनका संग्रह “अनामिका” 1923 में प्रकाशित हुआ था। विशेष रूप से, उनकी प्रसिद्ध कविता “जूही की कली” 1921 के आसपास लिखी गई थी, जो कि उनकी पहली रचना होने के पहले के दावों के विपरीत थी। निराला ने कविता के अलावा कथा और गद्य में भी प्रचुर लेखन किया।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएं

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने कई कविता संग्रह लिखे, जिनमें “अनामिका,” “परिमल,” “गीतिका,” और “अणिमा” शामिल हैं। उन्होंने “अप्सरा” और “चमेली” जैसे उपन्यास भी लिखे, हालांकि बाद वाले अधूरे रह गए। उनके कहानी संग्रहों में “लिली,” “सखी,” और “सुकुल की बीवी” शामिल हैं।

उन्होंने “रवीन्द्र कविता कानन” और “प्रबंध प्रतिमा” जैसे निबंध और आलोचना भी लिखी। बच्चों के लिए उन्होंने “भक्त ध्रुव” और “भीष्म” जैसी कहानियाँ लिखीं, साथ ही “रामचरितमानस” जैसी रचनाओं का खड़ीबोली हिंदी में अनुवाद भी किया।

उनके अनुवादों में “आनंद मठ” और “टेस्टामेंट ऑफ़ कृष्णकांत” जैसी कृतियाँ शामिल हैं। कुल मिलाकर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने कविता, उपन्यास, कहानियां, निबंध, बाल साहित्य और अनुवाद सहित अपने विविध लेखन के माध्यम से साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की उपलब्धियां

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की उपलब्धियां की सूची बहुत लंबी है उन्होंने कई उपलब्धियां अपना नाम की है उनके लेखन कार्य की वजह से उन्हें  मरणोपरांत “पद्मभूषण” से भी सम्मानित किया गया था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे जिन्होंने कविताएँ, कहानियाँ और उपन्यास लिखे है। वह छायावाद नामक आंदोलन का हिस्सा थे जो रूमानियत और सामाजिक विषयों पर केंद्रित था।

निराला ने “परिमल” और “अनामिका” जैसी कई प्रसिद्ध रचनाएँ लिखीं जिनमें प्रेम, प्रकृति और समाज के बारे में बात की गई है। उनकी लेखन की एक अनूठी शैली थी और उन्होंने कविता के विभिन्न रूपों के साथ प्रयोग किया। निराला ने अपने लेखन में जातिगत भेदभाव और गरीबी जैसी सामाजिक समस्याओं के खिलाफ भी बात की। आज भी लोग उनके सुंदर और सार्थक लेखन की प्रशंसा करते हैं और उन्हें अब तक के सबसे महान हिंदी लेखकों में से एक माना जाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु

भारत के सबसे प्रसिद्ध हिंदी साहित्य के छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी मृत्यु के अंतिम समय प्रयागराज के दारागंज में व्यतीत किया था। उनका अंतिम समय भी गरीबी में गुजरा वे जीवन भर गरीबी, पारिवारिक सदस्यों की मृत्यु का दुख और संघर्षों में बीता। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 को लंबी बीमारी के कारण हुई थी।

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के कोट्स

मनुष्य के अज्ञान की मार मनुष्य ही तो सहते हैं।

 

ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें, सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है।

 

तरस है ये देर से आँखें गड़ी श्रृंगार में, और दिखलाई पड़ेगी जो बुराई तिल में है।

 

भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है।

 

पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली, हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है।

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FAQs

Q1. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कौन थे?

Ans: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला एक प्रसिद्ध हिंदी कवि, उपन्यासकार, निबंधकार और कहानीकार थे। वह हिंदी साहित्य में छायावाद साहित्यिक आंदोलन के अग्रणी व्यक्तियों में से एक थे।

Q 2. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

Ans: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फरवरी 1896 को मिदनापुर नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था, जो अब भारत के पश्चिम बंगाल में है।

Q 3. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कुछ उल्लेखनीय रचनाएँ क्या हैं?

Ans: निराला ने हिंदी साहित्य में खूब लिखा। उनकी कुछ उल्लेखनीय कृतियों में “रागिनी,” “अनामिका,” “अलका,” “प्रभावती,” और “कुल्ली भाट” शामिल हैं।

Q 4. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला किस साहित्यिक आंदोलन से जुड़े थे?

Ans: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावाद साहित्यिक आंदोलन से जुड़े थे। छायावाद ने काव्य में रूमानियत, प्रकृति और आध्यात्मिकता पर जोर दिया।

Q5. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का हिंदी साहित्य में क्या योगदान था?

Ans: निराला ने अपनी कविता, उपन्यास, निबंध और कहानियों के माध्यम से हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कार्यों में मानवीय भावनाओं, सामाजिक मुद्दों और आध्यात्मिक गतिविधियों की गहरी समझ झलकती है।

Q6. क्या सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को अपने जीवन में किसी चुनौती का सामना करना पड़ा? 

Ans: हाँ, निराला को अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें वित्तीय कठिनाइयाँ, व्यक्तिगत त्रासदियाँ और स्वास्थ्य मुद्दे शामिल थे। इन चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने हिंदी साहित्य में लिखना और योगदान देना जारी रखा।

Q7. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की लेखन शैली क्या थी? 

Ans: निराला की लेखन शैली अपनी सादगी, भावनात्मक गहराई और ज्वलंत कल्पना से प्रतिष्ठित थी। उन्होंने अक्सर अपने कार्यों में प्रेम, प्रकृति, आध्यात्मिकता और मानवीय स्थिति के विषयों की खोज की।

Q8. क्या सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को उनके साहित्यिक योगदान के लिए पहचाना गया? 

Ans: जी हां, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को उनके साहित्यिक योगदान के लिए काफी पहचान मिली। उन्हें अपने जीवनकाल में अपनी कविता और गद्य के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए।

Q9. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु कैसे हुई?

Ans: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का लंबी बीमारी के कारण 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत में निधन हो गया। उन्होंने हिंदी साहित्य में एक अमिट छाप छोड़ी।

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