Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay 2024

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Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay: महाकवि जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि के चार स्तंभों में से एक थे उन्हे आधुनिक हिंदी साहित्य के कथाकार और नाटककार के साथ-साथ हिंदी रंगमंच के एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद साहित्य को अपनी साधना समझते थे। भावना-प्रधान कहानी लिखने वाले लेखक में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे। वे ‘छायावाद’ के प्रयोगधर्मी रचनाकार कवि माने जाते हैं।

Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay

पूरा नाममहाकवि जयशंकर प्रसाद
जन्म30 जनवरी, 1889 ई. वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु15 नवंबर, 1937 ईस्वी में वाराणसी, उत्तर प्रदेश (48 वर्ष)
अभिभावकदेवीप्रसाद साहु
पत्नीकमला देवी
शैक्षणिक योग्यताअंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय
राष्ट्रीयताभारतीय
रुचिसाहित्य लेखन, काव्य रचना, नाटक लेखन
लेखन विधाकाव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
साहित्य में पहचानछायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक
भाषाभावपूर्ण एवं विचारात्मक
शैलीविचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक।
मुख्य रचनाएँचित्राधार, कामायनी, आँसू, लहर, झरना, एक घूँट, विशाख, अजातशत्रु, आकाशदीप, आँधी, ध्रुवस्वामिनी, तितली और कंकाल
साहित्य में स्थानजयशंकर प्रसाद को हिंदी साहित्य में नई दिशा देने के कारण 'प्रसाद युग' का निर्माणकर्ता तथा 'छायावाद का प्रवर्तक' कहा जाता है।

जयशंकर प्रसाद का प्रारंभिक जीवन

महान कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी उत्तर प्रदेश के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके दादा शिव रत्न साहु वाराणसी के एक बहुत बड़े तंबाकू व्यापारी थे। वाराणसी में वे एक विशेष प्रकार की सुरती (तम्बाकू) बनाने के कारण ‘सुँघनी साहु’ के नाम से मशहूर थे। साथ ही उनकी ख्याति एक दानशील व्यक्ति की भी थी।

उनके घर अक्सर विद्वानों का आना जाना लगा रहता था। जयशंकर प्रसाद के पिता बाबू देवी प्रसाद साहु ने भी अपने पूर्वजों की इस दानशीलता की परंपरा को आगे बढ़ाया। जयशंकर प्रसाद की माता जी का नाम ‘मुन्नी बाई’ था।

बचपन में ही उनके पिता के निधन के कारण अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व का बोझ इनके कधों पर आ गया था। उस वक्त जयशंकर प्रसाद की उम्र केवल 11 वर्ष की थी। अपने पिता की मृत्यु के चार साल बाद ही उनकी मां की भी मृत्यु हो गई थी जो उनके जीवन का सबसे बड़ा दुख था। अपनी मां की मृत्यु के 2 साल बाद उनके बड़ेभाई की भी मृत्यु हो गई थी।

जयशंकर प्रसाद की शिक्षा

बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद बचपन से ही बहुत होनहार थे। उनकी शिक्षा घर पर ही शुरू हुई थी। उनके प्रारंभिक शिक्षक ‘मोहिनी लाल गुप्त’ थे। एक संपन्न परिवार से होने के कारण उनके घर पर ही उन्हें पढ़ाने के लिए संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी, उर्दू के शिक्षक आते थे।

उनमें रसमय सिद्ध उनके प्रमुख शिक्षक थे। नौ वर्ष की उम्र में ही जयशंकर प्रसाद ने ‘कलाधर’ उपनाम से ब्रजभाषा में एक सवैया लिखकर अपने गुरु रसमयसिद्ध को दिखाया था। चूंकि उनके घर विद्वान लोग अक्सर आया करते थे जो धर्म कर्म की बातें करते रहते थे। इसीलिए जयशंकर प्रसाद को प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों को पढ़ाने के लिए दीनबन्धु ब्रह्मचारी शिक्षक आते थे।

कुछ समय के बाद स्थानीय स्कूल में उनका नाम लिखवा दिया गया, पर यहाँ पर वे आठवीं कक्षा तक ही पढ़ सके। किंतु वह नियमित रूप से अध्ययन करते किया करते थे। उन्होंने स्वाध्याय द्वारा संस्कृत, पाली, हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी भाषा सहित अन्य भाषाओं के साहित्य का भी विशद अध्ययन किया।

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जयशंकर प्रसाद का करियर

जयशंकर प्रसाद का लेखन कार्य बहुत बचपन से ही शुरू हो गया था। ‘चित्राधर’ प्रसाद की पहली पुस्तक है, जो 1918 में प्रकाशित हुई थी। यह ब्रज और खड़ी बोली भाषाओं में कविताओं, कहानियों और निबंधों का मिश्रण है। 1928 में जारी दूसरे संस्करण में केवल ब्रज भाषा में लिखी रचनाएँ रखी गईं।

इसमें प्रसाद की प्रारंभिक कहानियाँ और कविताएँ शामिल हैं, जिन्हें प्रबंधन और ऐतिहासिक कहानियों जैसे ‘अयोध्या का उद्धार’, ‘वनमिलन’ और ‘प्रेमराज्य’ जैसे विषयों के साथ कथात्मक कविताओं में वर्गीकृत किया गया है। यह संग्रह प्रकृति, भक्ति और प्रेम पर केंद्रित है।

‘कानन कुसुम’ प्रसाद का पहला खड़ीबोली कविता संग्रह है, जिसके पहले संस्करण में ब्रज और खड़ीबोली दोनों कविताएँ शामिल हैं, लेकिन बाद के संस्करणों में केवल खड़ीबोली कविताएँ हैं। यह 1909 से 1917 तक चली थी। इसमें ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से प्रेरित कविताएँ शामिल हैं।

जयशंकर प्रसाद का “करुणालय” गीतिनाट्य पर आधारित एक नाटक है, जो पहली बार 1913 में ‘इंदु’ में प्रकाशित हुआ था। यह ‘चित्राधार’ के पहले संस्करण में और बाद में 1928 में स्वतंत्र रूप से भी पाया गया। यह राजा हरिश्चंद्र की कहानी बताता है। इसी तरह, 1914 में प्रकाशित “महाराणा का महत्व”, महाराणा प्रताप के बारे में बताता है और 1928 में स्वतंत्र रूप से भी जारी किया गया था।

उनकी रचना “झरना”, पहली बार 1918 में प्रकाशित हुआ, जो प्रसाद के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है और छायावाद युग की शुरुआत का प्रतीक है। आशा की झलक के साथ प्यार और उदासी को व्यक्त करने वाली एक गीतात्मक कविता “आंसू” पहली बार 1925 में प्रकाशित हुई, जिसका दूसरा संस्करण 1933 में आया।

1933 में प्रकाशित “लहर” प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ कविताओं को संकलित करती है। अंत में, “कामायनी”, 1936 में प्रकाशित एक महाकाव्य निबंध काव्य, अपने समय के महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करते हुए, मनु की कहानी को चित्रित करता है।

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जयशंकर प्रसाद की रचनाएं

जयशंकर प्रसाद ने अनेक रचनाएं लिखी है। उन्होंने अपनी आरम्भिक रचनाएँ ब्रजभाषा में लिखा था। जिस समय खड़ी बोली का प्रचलन कम था उस समय जयशंकर प्रसाद ने आधुनिक हिन्दी साहित्य को खड़ी बोली में लिखना शुरू किया था। उनके आने से ही हिंदी काव्य साहित्य में खड़ी बोली के माधुर्य का विकास हुआ।

जयशंकर प्रसाद को हिंदी साहित्य में कवि और नाटककार के रूप में विशेष रूप से जाना जाता है। वे छायावादी कवियों में सबसे प्रमुख कवियों में से एक हैं। उनकी रचना ‘कामायनी’ की तुलना संसार के श्रेष्ठ काव्यों से की जाती है। कामायनी उनका सर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य है। उनके काव्य में “सत्यं शिव सुन्दरम्” का जीता जागता रूप देखने को मिलता है।

उन्होंने मानव सौन्दर्य के साथ-साथ ही प्रकृति सौन्दर्य का भी सजीव वर्णन किया है। अपनी रचनाओं में उन्होंने ब्रजमाषा एवं खड़ी बोली दोनों भाषाओं का बखूबी प्रयोग किया है साथ ही उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ भी है। पर उनका प्रेम और रुझान हिन्दी साहित्य की ओर दिखता है जो उनकी रचनाओं से पता चलता है।

चलिए अब उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में जानते है जो इस प्रकार है–

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कहानियां

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कहानियों में शामिल है आँधी, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, इंद्रजाल, सन्देह, दासी, चित्रा मंदिर, रसिया, बालम, देवदासी, बिसाती, प्रणय-चिह्न, नीरा, शरणागत, चंदा, गुंडा, स्वर्ग के, खंडहर में, पंचायत, जहांआरा, मधुआ, उर्वशी, गुलाम, ग्राम, भीख में, ब्रह्मर्षि, पुरस्कार, रमला, छोटा जादूगर, बभ्रुवाहन, विराम चिन्ह, सालवती, अमिट स्मृति और सिकंदर की शपथ जैसी उनकी प्रमुख कहानियां हैं।

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कविताएं

जयशंकर प्रसाद की कुछ प्रमुख कविताएं नीचे दी गई है–

  • कानन कुसुम (1913)
  • महाराणा का महतव (1914)
  • झरना (1918)
  • आंसू (1925)
  • लहर (1933)
  • कामायनी (महाकाव्य) (1935/36) और
  • प्रेम पथिक (1914)

जयशंकर प्रसाद के प्रमुख नाटक

जयशंकर प्रसाद के प्रमुख नाटकों की सूची नीचे दी गई है जो इस प्रकार है–

  • एक घूंट
  • स्कंदगुप्त
  • चन्द्रगुप्त
  • ध्रुवस्वामिनी
  • राज्यश्री
  • अजातशत्रु और
  • जन्मेजय का नाग-यज्ञ
  • कामना

जयशंकर प्रसाद के प्रमुख उपन्यास

जयशंकर प्रसाद के प्रमुख उपन्यास की सूची नीचे दी गई है –

  • कंकल
  • तितली और
  • इरावती

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जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषताएं

जयशंकर प्रसाद को बचपन से ही साहित्य की ओर बहुत रुचि थी। उन्होंने ‘इन्दु’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया। इस पत्रिका के माध्यम से ही उन्हें हिंदी साहित्य में विशेष पहचान मिली। उनकी रचनाओं में प्रेम, समर्पण कर्तव्य और बलिदान की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है जो पाठकों को भावविभोर कर देती है।

जयशंकर प्रसाद अपनी हिंदी साहित्य की रचनाओं को अपनी साधना मानते थे। इसीलिए उन्हें हिंदी साहित्य में अपने योगदान देने के लिए सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में से एक माना जाता है। उनके हिंदी साहित्य में अपना अमूल्य योगदान देने के लिए उन्हें सदैव याद किया जाता है।

जयशंकर प्रसाद ने अपनी कहानियों,नाटक और कविताओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में क्रांति ला दिया था। आधुनिक हिंदी साहित्य के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद जी ने यथार्थ और आदर्शवादी रचनाओं का लेखन कार्य किया था।

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जयशंकर प्रसाद की पारिवारिक विपत्तियाँ

जयशंकर प्रसाद को अपनी पारिवारिक मुसीबतों का भी सामना करना पड़ा। उनका अधिकांश जीवन वाराणसी शहर में ही बीता था। जब जयशंकर प्रसाद की उम्र केवल बारह वर्ष थी तब उनके पिता का देहान्त हो गया था। इसके बाद उनके परिवार में पुस्तैनी धन बटवारे को लेकर गृहक्लेश होने लगा। जिसके कारण उनके पैतृक व्यवसाय में बहुत हानि हुई।

एक समय था जब ‘सुँघनीसाहु का परिवार धन वैभव से संपन्न था किंतु बढ़ते पारिवारिक क्लेश और अपने बिजनेस पर किसी के ज्यादा ध्यान न देने के कारण परिवार ऋण के भार से दब गया। इसके बाद पिता की मृत्यु के केवल चार साल बाद ही उनकी माता का भी देहान्त हो गया था।

अभी जयशंकर प्रसाद के जीवन से दुख गया नही की एक दुख और आ गया। उनके ज्येष्ठ भ्राता शम्भूरतन भी इस दुनिया से चल बसे थे। अब सारे घर की जिम्मेदारी अब जयशंकर प्रसाद के कंधों पर आ गई उस समय जयशंकर की उम्र केवल सत्रह वर्ष ही थी।

वे एक संयुक्त परिवार में रहते थे इसलिए घर के सभी सदस्यों के पालन पोषण की जिम्मेदारी केवल उन्हीं के हाथ में थे जिसका उन्होंने बखूबी ए अपनी जिम्मेदारी को निभाया। अपने काम में व्यस्त रहने के कारण उन्होंने अपने जीवन में केवल तीन-चार बार ही यात्राएँ की थी।

जयशंकर प्रसाद की पर्सनल लाइफ

जयशंकर प्रसाद ने अपने जीवन में तीन विवाह किया था उनका पहला विवाह 1908 में ‘विध्वंसनीदेवी’ से हुआ था। किंतु शादी के कुछ समय बाद उनकी पत्नी विध्वंसनीदेवी को क्षय रोग हो गया था जिसके कारण उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। इसके बाद 1917 में जयशंकर प्रसाद ने अपना दूसरा विवाह ‘सरस्वती’ से किया। किंतु बड़े हैरानी की बात है की उनकी दूसरी पत्नी की भी क्षय रोग के कारण ही मृत्यु हुई थी।

अपनी दूसरी पत्नी की मृत्यु के बाद जयशंकर प्रसाद ने अब और विवाह नहीं करने की ठान ली किंतु विवाह करने की नहीं थी। किंतु उन्होंने अपनी भाभी के दुख से दुखी होकर लिए तीसरा विवाह कमला देवी के साथ कर जिनसे उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ। और उसका नाम था ‘रतन शंकर प्रसाद’।

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जयशंकर प्रसाद के अवार्ड

प्रसिद्ध भारतीय कवि और लेखक जयशंकर प्रसाद को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्हें प्राप्त सबसे उल्लेखनीय पुरस्कारों में से एक ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ है, जिसे भारत में सर्वोच्च साहित्यिक सम्मानों में से एक माना जाता है। प्रसाद को उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक उपलब्धियों के लिए 1961 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा, प्रसाद को 1955 में “कामायनी” नामक काव्य कृति के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार साहित्य अकादमी, भारत की राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक कार्यों के लिए दिया जाता है।

जयशंकर प्रसाद की उपलब्धियां

जयशंकर प्रसाद भारत के एक अत्यंत प्रतिभाशाली लेखक थे। उन्होंने हिंदी में कई कविताएं, नाटक और कहानियां लिखीं जिन्हें लोग पढ़ना पसंद करते थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक “कामायनी” नामक लंबी कविता है। यह कविता बड़े विचारों के बारे में बात करती है जैसे लोग कैसा महसूस करते हैं, क्या सही और गलत है और चीजें कैसे शुरू और खत्म होती हैं।

प्रसाद ने “स्कंदगुप्त” और “चंद्रगुप्त” जैसे नाटक भी लिखे, जो न केवल मनोरंजक थे बल्कि लोगों को समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में सोचने पर भी मजबूर करते थे।

वह लेखन में इतने अच्छे थे कि उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे महत्वपूर्ण पुरस्कार जीते, जो भारतीय साहित्य में एक बड़ी बात है।

प्रसाद के लेखन में अक्सर उस समय समाज में क्या हो रहा था, इसके बारे में बात की जाती थी। उन्होंने भारतीय लोगों के संघर्षों और सपनों के बारे में लिखा, इसलिए उनकी रचनाएँ बहुत प्रासंगिक थीं।

भले ही प्रसाद आज जीवित नहीं हैं, लेकिन उनकी लेखनी आज भी कई लोगों को प्रेरित करती है। उनकी कहानियों और कविताओं को भारतीय साहित्य में आज भी प्यार और सम्मान मिलता है। उन्हें एक महान लेखक के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपने शब्दों से बड़ा प्रभाव डाला।

जयशंकर प्रसाद की मृत्यु

जयशंकर प्रसाद ने अपने जीवन में तमाम मुसीबत और दुखों का सामना करते हुए उन्होंने हिंदी साहित्य में जो अपना योगदान दिया उसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता है। छायावादी कवि के आधार स्तंभ में से एक जयशंकर प्रसाद थे जो अपनी रचनाओं के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। जयशंकर प्रसाद की मृत्यु क्षय रोग के कारण 48 वर्ष की उम्र में 15 नवम्बर, सन् 1937 को वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुई थी।

जयशंकर प्रसाद के कोट्स

जयशंकर प्रसाद ने अपने जीवन और अनुभव से जो देखा उसे उन्होंने लोगों को उद्धरण दिए है। उनके द्वारा दिए गए कोट्स नीचे दिए गए हैं–

जीवन विश्व की संपत्ति है। प्रमाद से, क्षणिक आवेश से, या दुःख की कठिनाइयों से उसे नष्ट करना ठीक तो नहीं।

 

इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले हृदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।

 

परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है, निश्चेष्ट शांति मरण है।

 

स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।

 

हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।

 

पढ़ाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।

 

दो प्यार करने वाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।

 

प्रेम महान है, प्रेम उदार है। प्रेमियों को भी वह उदार और महान बनाता है।

 

समय बदलने पर लोगों की आँखें भी बदल जाती हैं।

 

प्रत्येक स्थान और समय बोलने योग्य नहीं रहते।

 

असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

 

ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिए रात-दिन लड़ना पड़े!

 

दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है।

 

संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ?

 

सहनशील होना अच्छी बात है, पर अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।

 

निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।

 

क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती।

 

मनुष्य दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है, और अपना चलना बंद कर देता है।

 

जो अपने कर्मों को ईश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।

 

अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।

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तो दोस्तों! जयशंकर प्रसाद के जीवनके बार में आपको यह जानकारी कैसी लगी? हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथभी शेयर करें।

FAQs

Q. जयशंकर प्रसाद कौन थे?

Ans: जयशंकर प्रसाद एक प्रसिद्ध भारतीय कवि, नाटककार और उपन्यासकार थे। उनका जन्म 30 जनवरी, 1889 को वाराणसी, भारत में हुआ था।

Q. जयशंकर प्रसाद की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ क्या हैं?

Ans: जयशंकर प्रसाद की कुछ प्रसिद्ध कृतियों में महाकाव्य “कामायनी”, नाटक “चंद्रगुप्त” और उपन्यास “तितली” शामिल हैं।

Q. “कामायनी” किस बारे में है?

Ans: “कामायनी” एक महाकाव्य कविता है जो मानवीय भावनाओं और संघर्षों की पड़ताल करती है। यह प्रेम, नैतिकता और जीवन की क्षणिक प्रकृति के विषयों पर प्रकाश डालता है।

Q. “चन्द्रगुप्त” का क्या महत्व है?

Ans: “चंद्रगुप्त” एक ऐतिहासिक नाटक है जो मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन को चित्रित करता है। यह प्राचीन भारत की राजनीतिक साजिशों और चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।

Q. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी साहित्य में किस प्रकार योगदान दिया?

Ans: जयशंकर प्रसाद ने अपनी रचनाओं में आधुनिक विषयों और तकनीकों का परिचय देकर हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में हिंदी साहित्य को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Q. जयशंकर प्रसाद की लेखन शैली कैसी थी?

Ans: जयशंकर प्रसाद की लेखन शैली की विशेषता उसकी सादगी, भावनात्मक गहराई और काव्यात्मक कल्पना थी। उन्हें मानवीय भावनाओं की गहरी समझ थी, जो उनके कार्यों में झलकती थी।

Q. क्या जयशंकर प्रसाद को उनके काम के लिए कोई पुरस्कार मिले?

Ans: हाँ, जयशंकर प्रसाद को साहित्य में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें 1955 में “कामायनी” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है।

Q. जयशंकर प्रसाद का निधन कब हुआ?

Ans: 14 जनवरी, 1937 को जयशंकर प्रसाद का निधन हो गया, वे अपने पीछे हिंदी साहित्य में एक समृद्ध विरासत छोड़ गए जो पाठकों और लेखकों को प्रेरित करती रहती है।

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