Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay 2024

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Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay: मुंशी प्रेमचंद एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे जो अपने आधुनिक हिंदी साहित्य लेखन के लिए जाने जाते हैं। उन्हें बीसवीं सदी की शुरुआत के सबसे बड़े हिंदी लेखकों में से एक माना जाता है। वह उपन्यासकार, लघुकथा लेखक और नाटककार थे जिन्होंने कई कहानियाँ, उपन्यास और निबंध लिखे हैं। वह समाज में प्रचलित जातिगत बुराइयां, महिलाओं और मजदूरों की दुर्दशा के बारे में बहुत मार्मिक तरीके से लिखा करते थे।

वह भारत के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक थे। उन्होंने कई कहानियाँ, उपन्यास और निबंध लिखे। प्रेमचंद की कहानियाँ अक्सर अपने समय के समाज को दिखाती हैं। एक चीज़ जो प्रेमचंद को सबसे अलग करती थी, वह थी मानवीय भावनाओं और रिश्तों की जटिलताओं के बारे में उनकी गहरी समझ। अपने पात्रों के माध्यम से, उन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित गरीबी, अन्याय और जाति व्यवस्था जैसे विषयों के बारे में बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।

वह अपने लेखन में “यथार्थवाद” को शामिल करने वाले पहले हिंदी लेखक माने जाते हैं। उन्होंने आम लोगों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के संघर्षों के बारे में लिखा। उनकी लेखन शैली सरल और सशक्त थी, जिससे लोगों के लिए उनकी कहानियों से जुड़ना बहुत आसान है। उनकी रचनाओं में गोदान, कर्मभूमि, गबन, मानसरोवर और ईदगाह जैसी रचनाएं शामिल हैं।

उनकी रचनाओं ने भारतीय हिंदी साहित्य पर अमिट प्रभाव छोड़ा है जिसके कारण पाठकों और लेखकों की भावी पीढ़ियों को भी बहुत प्रेरणा मिलती है। तो दोस्तों! इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपके साथ भारत के सबसे महानतम उर्दू-हिन्दी लेखकों में से मुंशी प्रेमचंद के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी साझा करेंगे तो इसीलिए आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़े। चलिए शुरू करते है–

Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay

वास्तविक नामधनपत राय श्रीवास्तव
कलम नामप्रेमचंद, मुंशी प्रेमचंद, नवाब साहब
जन्म31 जुलाई 1880
लमही, बनारस, भारत
मृत्यु8 अक्टूबर 1936 (उम्र 56)
लमही, बनारस, भारत
जीवनसाथीपहली पत्नी (1895; अलग) दूसरी पत्नी शिवरानी देवी
(म. 1906; मृत्यु 1936)
बच्चे2
पेशालेखक, कवि, उपन्यासकार, लघुकथाकार, कहानीकार
सक्रिय वर्ष1920 –1936
लेखन भाषा हिंदी, उर्दू 
प्रमुख रचनाएंगोदान, बाज़ार-ए-हुस्न, कर्मभूमि, "शतरंज के खिलाड़ी", गबन, मानसरोवर और ईदगाह आदि
राष्ट्रीयताभारतीय

मुंशी प्रेमचंद का प्रारंभिक जीवन

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मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को भारत के लमही गांव, बनारस में एक कायस्थ हिंदू परिवार में हुआ था। उनका असली नाम धनपत राय था, लेकिन उन्हें मुख्यरूप से मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाता है। साथ ही उन्हें नवाब राय के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वे अपनी रचनाओं में लेखक के रूप में इन नामों का उपयोग किया करते थे। यह नाम उनके चाचा ने रखा था।

उनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनंदी देवी था। उनके पिता पोस्ट ऑफिस में काम करते थे। उनकी माँ उत्तर प्रदेश के करौनी गाँव के एक धनी परिवार से थीं। मुंशी प्रेमचंद की 1926 में लिखी गई लघु कहानी “बड़े घर की बेटी” में जो “आनंदी” का चरित्र था वह उनकी माँ से ही प्रेरित था। मुंशी प्रेमचन्द अपने माता पिता की चौथी संतान थे।

उनके दादा गुरु सहाय लाल पटवारी थे जो उनसे बहुत प्यार करते थे।उनकी एक बड़ी बहन थी जिसका नाम सुग्गी राय था उनकी दो और बहनें भी थीं जिनकी बचपन में ही मृत्यु हो गई थी उनका कोई भाई नहीं था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 7 साल की उम्र में शुरू किया था। उन्होंने वाराणसी में लमही के पास लालपुर के एक मदरसे से उर्दू और फ़ारसी में पढ़ाई की थी।

1897 में अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की थी। लेकिन क्वींस कॉलेज में उन्हें फीस में छूट नहीं मिली क्योंकि केवल प्रथम श्रेणी वाले छात्र ही यह लाभ ले सकते थे। इसके बाद उन्होंने सेंट्रल हिंदू बॉयज स्कूल में एडमिशन भी लेने का प्रयास किया था लेकिन वहां भी उन्हें असफलता ही मिली।

इसके बाद उन्होंने 1919 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. पास किया था। वहां उन्होंने अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास विषय का गहन अध्ययन किया। जब वे केवल आठ साल के थे तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी और इसके कुछ समय बाद ही उनकी दादी की भी मृत्यु हो गई थी।

अपने परिवार की वित्तीय कठिनाइयों के कारण उन्हें जल्दी स्कूल छोड़ना पड़ा। लेकिन अपनी सीमित औपचारिक शिक्षा के बावजूद, उन्हें पढ़ने और सीखने में गहरी रुचि थी। प्रेमचंद ने बड़े पैमाने पर पढ़कर खुद को शिक्षित किया। ज्ञान की अपनी प्यास बुझाने के लिए उन्होंने दोस्तों और स्थानीय पुस्तकालयों से किताबें उधार लेकर पढ़ा करते थे।

वह रवीन्द्रनाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय और अन्य जैसे महान लेखकों से बहुत प्रभावित थे। प्रेमचंद के लेखन में अक्सर उन सामाजिक और आर्थिक संघर्षों की झलक अक्सर देखने को मिलती है जिन्हें उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से देखा और अनुभव किया था।

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मुंशी प्रेमचंद का करियर

जब 1897 में उनके पिता की मृत्यु एक लंबी बीमारी के कारण हो गई थी तब उन्होंने अपनी पढ़ाई बंद कर दी थी। उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। प्रेमचंद की पहली नौकरी एक पुस्तक के थोक विक्रेता के यहाँ एक पुस्तक विक्रेता की थी जहाँ उन्हें बहुत सारी किताबें पढ़ने का अवसर मिला। इसके बाद उन्होंने एक बनारस में एक वकील के बेटे को केवल 5 रुपये प्रति माह पर ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था।

इसके बाद में उन्हें 18 रुपये प्रति माह के वेतन पर एक शिक्षक की नौकरी मिल गई थी। मुंशी प्रेमचंद की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उन्हें अपनी किताबों का संग्रह भी बेचना पड़ा था। इसके बाद उन्हें सन् 1900 में वाराणसी के एक सरकारी जिला स्कूल में सहायक अध्यापक की सरकारी नौकरी भी मिल गयी थी। जिसमें वेतन के रूप में उन्हें 20 रुपये प्रति माह मिलते थे।

इसके कुछ साल बाद उनकी पोस्टिंग प्रतापगढ़ में हो गई थी उन्होंने अपना पहला लघु उपन्यास असरार ए मआबिद यानी हिंदी में देवस्थान रहस्य “द मिस्ट्री ऑफ गॉड्स एबोड” को लिखा था। जो 1903 में प्रकाशित हुआ था। वर्ष 1909 में मुंशी प्रेमचन्द स्कूलों के उप-उप निरीक्षक बन गए थे जहां क्रमशः उनका तबादला महोबा और फिर हमीरपुर में हो गया था।

कुछ समय बाद जब एक ब्रिटिश कलेक्टर ने छापेमारी की थी जिसमे भारत के सोज़-ए-वतन की लगभग 500 प्रतियां जला दिया गया था। और इसी घटना से नाराज होकर उन्होंने अपना नाम “नवाब राय” से बदलकर “प्रेमचंद” रख लिया था। उन्होंने 1914 में अपना लेखन कार्य हिंदी में लिखना शुरू किया था। उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास सेवा सदन 1919 में प्रकाशित हुआ था।

इसके बाद उन्होंने निर्मला उपन्यास लिखा जो 1925 में प्रकाशित हुआ। उनकी रचना गबन को उन्होंने 1931 में प्रकाशित किया था। इसके एक साल बाद उन्होंने कर्मभूमि को लिखा जिसे भी लोगों ने बहुत पसंद किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में गोदान भी है जो 1936 में प्रकाशित हुआ था। उनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र था जो 1936 में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास अधूरा लिखा था क्योंकि यह उपन्यास उन्होंने अपनी जिंदगी के अंतिम क्षणों में लिखा था।

अपनी गंभीर बीमारी के कारण वे इस उपन्यास को पूरा नहीं कर पाए थे। उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुई थी 1907 में जो कहानी थी दुनिया का सबसे अनमोल रतन जिसे उर्दू पत्रिका ज़माना में प्रकाशित किया गया था। जबकि उनकी अंतिम कहानी उनकी मृत्यु के बाद 1938 में प्रकाशित हुई थी। जिसे भी ज़माना मैगजीन के माध्यम से प्रकाशित किया गया था।

उन्होंने कुछ उल्लेखनीय लघु कथाएँ भी लिखा था जिसमें से प्रमुख है बड़े भाई साहब जो 1910 में प्रकाशित हुई थी। इसके छः साल बाद उनकी पंच परमेश्वर भी प्रकासित हुई जिसे भी लोगों ने बहुत पसंद किया। गोरखपुर जिला में, उन्होंने कई पुस्तकों का हिंदी भाषा में अनुवाद किया था। प्रेमचंद का पहला हिंदी उपन्यास सेवा सदन था जो मूल रूप से उर्दू भाषा में लिखा गया था। जो वर्ष 1919 में हिंदी भाषा में प्रकाशित हुआ था।

उस समय उन्होंने इलाहाबाद से बीए की डिग्री भी पूरी कर लिया था। इसके बाद दो साल बाद वे स्कूलों के उप निरीक्षक के रूप में काम करने लगे थे। उप निरीक्षक रूप में वे ज्यादा समय तक काम नहीं कर पाए उन्होंने 8 फरवरी 1921 को इस सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद वे भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में भाग भी लेने लगे थे।

इसके बाद उन्होंने बूढ़ी काकी भी लिखा था जो 1921 में प्रकाशित हुई थी जिसमें एक बुजुर्ग महिला के जीवन की बड़ी ही मार्मिक घटना को लेखक बड़े ही आकर्षक तरीके से बताते है। इसके तीन अल बाद उन्होंने शतरंज के खिलाड़ी को 1924 में प्रकाशित किया। बाद में नमक का दरोगा 1925 में प्रकाशित हुआ और पूस की रात 1930 में प्रकाशित हुआ। उर्दू पत्रिका ज़माना के संपादक मुंशी दया नारायण निगम ने ही उन्हें छद्म नाम “प्रेमचंद” रखने की सलाह दी थी। तब से ही उनका नाम मुंशी प्रेमचंद हो गया।

और अंत में उनकी लघु कथा ईदगाह 1933 में प्रकाशित हुई थी जिसे भी लोगों द्वारा जमकर प्यार मिला। जिसमे एक हमीद नाम का लड़का अपनी मां की परेशानी को देखकर मेले से एक चिमटा खरीद कर लाता है। मुंशी प्रेमचंद की हर एक रचनाओं में वो मार्मिकता और मानवीय वैल्यूज देखने को मिलते है जो कही और देखने को नहीं मिलता।

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मुंशी प्रेमचंद की पर्सनल लाइफ

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मुंशी प्रेमचंद का विवाह बचपन में ही एक अमीर जमींदार की बेटी से 1895 में हुआ था। यह रिश्ता उनके नाना ने तय किया था। उस वक्त प्रेमचंद केवल पंद्रह वर्ष के थे और वे 9वी कक्षा में पढ़ते थे। अपनी मां की मृत्यु के बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी।

उनकी सौतेली मां और अपनी पत्नी के साथ पारिवारिक कलह के कारण उनकी पहली पत्नी अपने मायके चली गई और कभी वापस लौटकर नहीं आई। उनकी पत्नी को प्रेमचंद ने भी वापस लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके बाद उन्होंने अपनी दूसरी शादी 1906 में एक बाल विधवा शिवरानी देवी से किया था।

एक विधवा से शादी करने के लिए उन्हें बहुत सामाजिक निंदा का भी सामना करना पड़ा था। क्योंकि उस समय एक विधवा से विवाह करना वर्जित माना जाता था। मुंशी प्रेमचंद के सभी बच्चे उनकी दूसरी पत्नी से हुए थे। उनका बेटा अमृत राय पेशे से अपने पिता की तरह लेखक थे। जबकि दूसरा बेटा श्रीपथ राय था, उनकी की एक बेटी भी थी।

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मुंशी प्रेमचंद की उपलब्धियां

मुंशी प्रेमचंद एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे जो अपने उपनाम मुंशी प्रेमचंद से मुख्यतः जाने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में कई उपलब्धियां हासिल किया है। उनको अपनी मार्मिक लेखन शैली के लिए जाना जाता है। उनकी रचनाएं भारतीय साहित्य की “हिंदुस्तानी साहित्य” में उन्होंने कई उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ दी हैं।

मुंशी प्रेमचंद को हिंदी साहित्य में अपने शानदार योगदान के लिए भारत ही नहीं विदेशी लेखकों द्वारा भी बहुत सराहा गया है। कई हिंदी लेखकों द्वारा उन्हें अक्सर “उपन्यास सम्राट” भी कहा जाता है। अपने जीवन काल में उन्होंने 14 उपन्यास और करीब 300 लघु कहानियाँ लिखीं थी।

इसके अलावा उन्होंने निबंधों, बच्चों की कहानियों और जीवनियों को भी बखूबी लिखा था। उनकी अनेक कहानियाँ विभिन्न संग्रहों में भी प्रकाशित हो चुकी है जिनमें 8 खंडों वाला प्रमुख कहानी संग्रह मानसरोवर भी आता है जिसे 1900 से 1936 के बीच शामिल किया गया है, इस कहानी संग्रह को उनके सबसे लोकप्रिय कहानी संग्रहों में से भी एक माना जाता है।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु

मुंशी प्रेमचंद की भारत के वाराणसी में अपनी कई दिनों की लंबी बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी अपनी मृत्यु के समय उनकी उम्र 56 वर्ष थी। उनकी मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 हुई थी। अपनी मृत्यु के कुछ वर्ष पहले उन्होंने 1934 में बॉम्बे में अजंता सिनेटोन प्रोडक्शन हाउस से पटकथा लेखन में नौकरी कर ली थी। उन्होंने एक फिल्म मजदूर के लिए फिल्म की पटकथा भी लिखी थी। इस फिल्म में उन्होंने एक मजदूरों का नेता के रूप में एक छोटा सा कैमियो रोल भी निभाया था।

पर उन्हें बंबई का यह फिल्म उद्योग का माहौल कुछ ज्यादा पसंद नहीं आया। इसके बाद उनके एक साल के एग्रीमेंट के बाद वे बनारस वापस आ गये थे। अपनी मृत्यु के आखिरी समय में खराब स्वास्थ्य के कारण वे अपनी रचना हंस को प्रकाशित नहीं कर पाये थे। इसके बाद वर्ष 1936 में, उन्हें लखनऊ शहर में एक लेखक संघ के पहले अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था।

उनका सबसे आखिरी हिंदी उपन्यासों में से एक गोदान था। उनकी रचना कफ़न वर्ष 1936 में ही अपनी मृत्यु के ठीक पहले उन्होंने लिखा था जो उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक थी। जबकि उनकी आखिरी कहानी क्रिकेट मैच थी जिसे वर्ष 1937 में उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित किया गया था।

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मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं

मुंशी प्रेमचंद ने अनेक रचनाएं लिखी है जिनमें से कहानी, उपन्यास और लघु कथा लेखन जैसी ढेर सारी विधाओं में लेख लिखा था।

मुंशी प्रेमचंद की कहानियां

मुंशी प्रेमचंद की कुछ प्रमुख कहानी इस प्रकार है–

  • बेटी का धन
  •  दुनिया का सबसे अनमोल रतन
  •  क्रिकेट की प्रतियोगिता
  •  गुप्त धन
  •  नमक का दरोगा
  •  दुर्गा का मंदिर
  •  बूढ़ी काकी
  •  बड़े भाई साहब
  •  परीक्षा
  •  पूस की रात
  •  सज्जनता का दंड
  •  पुत्र प्रेम
  •  लॉटरी
  •  अदीब की इज़्ज़त
  •  शतरंज के खिलाड़ी (हिन्दी)
  •  शतरंज की बाजी (उर्दू)
  •  नशा
  •  हिंसा परमो धर्मः
  •  मंत्र
  •  ईश्वरीय न्याय
  •  पंच परमेश्वर
  •  बलिदान
  •  कफ़न
  •  ईदगाह
  •  घासवाली
  •  सॉट

मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास

मुंशी प्रेमचंद ने आने को उपन्यास लिखे हैं उनकी कुछ प्रमुख उपन्यास इस प्रकार हैं–

  • देवस्थान रहस्य
  •  सेवा सदन
  •  प्रतिज्ञा
  •  रूठी रानी
  •  प्रेमाश्रम
  •  कायाकल्प
  •  निर्मला
  •  बेवा (उर्दू)
  •  गोशा-ए-अफियत (उर्दू)
  •  चौगान-ए-हस्ती (उर्दू)
  •  किशना
  •  सोज़-ए-वतन
  •  वरदान
  •  असरार-ए-मआबिद (उर्दू)
  •  हमखुर्मा-ओ-हम सवाब (उर्दू)
  •  परदा-ए-मजाज़ (उर्दू)
  •  बाज़ार-ए-हुस्न (उर्दू)
  •  मंगलसूत्र (अपूर्ण)
  •  गबन (गबन के रूप में भी लिप्यंतरित)
  •  रंगभूमि
  •  जलवा-ए-इसर (उर्दू)
  •  कर्मभूमि
  •  मैदान-ए-अमल (उर्दू)
  •  गोदान

मुंशी प्रेमचंद के नाटक

मुंशी प्रेमचंद के प्रमुख नाटक किस प्रकार हैं–

  • संग्राम (1923
  • कर्बला (1924)
  • प्रेम की वेदी (1933)
  •  ताजुरबा
  •  रूहानी शादी
  •  संग्राम

मुंशी प्रेमचंद के अनुवाद

मुंशी प्रेमचंद ने अनेक रचनाओं का हिंदू अनुवाद भी लिखा है जिनमें से प्रमुख है–

  • रतन नाथ धर सरशार
  • लियो टॉल्स्टॉय (द स्टोरी ऑफ़ रिचर्ड डबलडिक)
  • ऑस्कर वाइल्ड (कैंटरविले)
  • जॉन गल्सवर्थी (स्ट्रिफ़)
  • सादी शिराज़ी
  • गाइ डे मौपासेंट
  • मौरिस मैटरलिंक (द साइटलेस)
  • और हेंड्रिक विलेम वैन लून की रचनाएँ शामिल हैं।

मुंशी प्रेमचंद के निबंध

मुंशी प्रेमचंद के कुछ प्रमुख निबंध इस प्रकार हैं–

  • कुछ विचार (दो भाग)
  • क़लम त्याग और तलवार

मुंशी प्रेमचंद की बायोग्राफी

मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख बायोग्राफी इस प्रकार है–

  • दुर्गादास
  • महात्मा शेखसादी

मुंशी प्रेमचंद की बच्चों की किताबें

मुंशी प्रेमचंद ने बच्चों के लिए भी किताब लिखी है उनकी प्रमुख किताबों में शामिल है–

  • बाल कहानियाँ सम्पूर्ण
  • मनमोहक
  • राम चर्चा

मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली

मुंशी प्रेमचंद का जन्म गांव में हुआ था जिसके कारण उन्हें गांव के रीति रिवाज से लेकर गांव के लोगों का रहन-सहन सब तरह के माहौल को वे बड़े ही अच्छे तरीके से समझते थे। उनकी रचनाओं में हमें अक्सर लोकोक्तियों और मुहावरों का मिश्रण देखने को मिलता है। उनकी लेखन शैली बहुत सरल होने के साथ-साथ बहुत रोचक भी थी।

उन्होंने मूल रूप से अपनी रचनाओं को उर्दू भाषा में लिखना शुरू किया था इसीलिए उनकी रचनाओं में उर्दू और हिंदी भाषा का मिश्रण देखने को मिलता है। मुंशी प्रेमचंद की सबसे बड़ी खास बात यह है कि उन्होंने आम आदमी की भाषा का बखूबी इस्तेमाल किया था। इसीलिए आम लोगों के लिए उनकी रचनाओं आदि को पढ़ना सुनना बहुत आसान हो गया।

मुंशी प्रेमचंद के फेवरेट

मुंशी प्रेमचंद कल्पना शक्ति को ध्यान में रखकर रचनाएं लिखा करते थे जिसमे वास्तविक जीवन के परिदृश्य भी समाहित होते थे। वे जिन लोगों को अपना आइडल मानते थे उनमें से प्रमुख थे ब्रिटिश कथा लेखक और पत्रकार जॉर्ज डब्ल्यू. एम. रेनॉल्ड्स, चार्ल्स डिकेंस, ऑस्कर वाइल्ड, सादी शिराज़ी, गाइ डी मौपासेंट, जॉन गल्सवर्थी, मौरिस मैटरलिंक, और हेंड्रिक वैन लून।

उनका सबसे पसंददीदा उपन्यास था जॉर्ज डब्ल्यू. एम. रेनॉल्ड्स द्वारा लिखा गया “द मिस्ट्रीज़ ऑफ़ द कोर्ट ऑफ़ लंदन” यह उन्हे बहुत पसंद था। मुंशी प्रेमचंद भारत के सबसे बड़े हिंदू सन्यासी और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद को भी अपना आइडल मानते थे।

मुंशी प्रेमचंद भारतीय क्रांतिकारियों में महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक से बहुत प्रभावी थे। इसीलिए उनकी रचनाओं में अक्सर देशप्रेम की झलक भी देखने को मिलती है जो उनके देश प्रेम को दर्शाता है। उन्होंने देशभक्ति से संबंधित कई लेख भी लिखे थे।

मुंशी प्रेमचंद के विवाद

मुंशी प्रेमचंद के जीवन में उनके कुछ विवाद भी रहे है। जब उन्होंने अपनी दूसरी शादी की थी इसके बाद उन्हें कई सामाजिक विरोधों का सामना भी करना पड़ा था। जब मुंशी प्रेमचन्द की मृत्यु हो चुकी थी इसके बाद उनकी पत्नी ने उनके जीवन की घटनाओं पर आधारित एक किताब लिखी थी। जिसका नाम था प्रेमचंद घर में।

मुंशी प्रेमचंद के कोट्स

मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन के अनुभव के आधार पर लोगों को कोट्स भी कहे हैं जो सामाजिक जीवन के दृश्य को वास्तविक रूप से दिखाते हैं उनके कहे गए कुछ कोट्स इस प्रकार हैं–

“जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।”

 

” जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है!”

 

” जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा- ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।”

 

” बच्चों के लिए बाप एक फालतू-सी चीज – एक विलास की वस्तु है, जैसे घोड़े के लिए चने या बाबुओं के लिए मोहनभोग। माँ रोटी-दाल है। मोहनभोग उम्र-भर न मिले तो किसका नुकसान है; मगर एक दिन रोटी-दाल के दर्शन न हों, तो फिर देखिए, क्या हाल होता है।”

FAQs

Q: 1. मुंशी प्रेमचंद कौन थे?

Ans: मुंशी प्रेमचंद एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे जो हिंदी और उर्दू साहित्य में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध थे। उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को भारत के वाराणसी के पास एक गाँव लमही में हुआ था।

Q: 2. मुंशी प्रेमचंद की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ क्या हैं?

Ans: प्रेमचंद ने कई लघु कहानियाँ, उपन्यास और निबंध लिखे। उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध कार्यों में “गोदान,” “गबन,” “निर्मला,” “सेवा सदन,” और “शतरंज के खिलाड़ी” शामिल हैं।

Q: 3. मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन में किन विषयों की खोज की?

Ans: मुंशी प्रेमचंद का लेखन अक्सर गरीबी, अन्याय, जाति व्यवस्था और आम लोगों के संघर्ष जैसे सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित था। उनका उद्देश्य अपनी कहानियों के माध्यम से जागरूकता और सहानुभूति लाना था।

Q: 4. मुंशी प्रेमचंद को लेखक बनने के लिए किस बात ने प्रेरित किया?

Ans: प्रेमचंद के प्रारंभिक जीवन के अनुभवों, जिनमें गरीबी और सामाजिक अन्याय को देखना भी शामिल था, ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया। वह सामाजिक परिवर्तन लाने और समाज के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में साहित्य की शक्ति में विश्वास करते थे।

Q: 5. मुंशी प्रेमचंद ने भारतीय साहित्य में किस प्रकार योगदान दिया?

Ans: मुंशी प्रेमचंद को आधुनिक भारतीय साहित्य के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। भारतीय समाज के उनके यथार्थवादी चित्रण के साथ-साथ मानवीय भावनाओं की गहरी समझ ने लेखकों की अगली पीढ़ियों को बहुत प्रभावित किया।

Q: 6. मुंशी प्रेमचंद की लेखन शैली कैसी थी?

Ans: प्रेमचंद की लेखन शैली में सरलता, यथार्थवाद और सहानुभूति थी। उन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी को बहुत विस्तार और बारीकियों के साथ चित्रित किया, जिससे उनकी कहानियां व्यापक दर्शकों के लिए प्रासंगिक बन गईं।

Q: 7. क्या मुंशी प्रेमचंद को अपने जीवन में किसी चुनौती का सामना करना पड़ा?

Ans: हाँ, प्रेमचंद को अपने पूरे जीवन में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें वित्तीय कठिनाइयाँ और ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उनके काम पर सेंसरशिप शामिल थी। इन चुनौतियों के बावजूद, वह अपने लेखन के प्रति प्रतिबद्ध रहे और प्रभावशाली साहित्य का सृजन जारी रखा।

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